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सद्व्यवहार एक अचूक अस्त्र

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| सद्व्यहार एक अचूक अस्त्र | एक राजा ने एक दिन स्वप्न देखा कि कोई परोपकारी साधु उससे कह रहा है कि बेटा! कल रात को तुझे एक विषैला सर्प काटेगा और उसके काटने से तेरी मृत्यु हो जायेगी। वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है, पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेने के लिए वह तुम्हें काटेगा। प्रातःकाल राजा सोकर उठा और स्वप्न की बात पर विचार करने लगा। धर्मात्माओं को अक्सर सच्चे ही स्वप्न हुआ करते हैं। राजा धर्मात्मा था, इसलिए अपने स्वप्न की सत्यता पर उसे विश्वास था। वह विचार करने लगा कि अब आत्म- रक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए? सोचते- सोचते राजा इस निर्णय पर पहुँचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है। उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया। संध्या होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह- जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुँचाने या छेड़- छाड़ करने का प्रयत्न न करे। रात को ठी

सफलता के सुत्र

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*सफल जीवन* *के* *सूत्र* ✍1. *जीवन* जब तुम पैदा हुए थे तो तुम रोए थे जबकि पूरी दुनिया ने जश्न मनाया था। अपना जीवन ऐसे जियो कि तुम्हारी मौत पर पूरी दुनिया रोए और तुम जश्न मनाओ। ✍2. *कठिनाइयों* जब तक आप अपनी समस्याओं एंव कठिनाइयों की वजह दूसरों को मानते है, तब तक आप अपनी समस्याओं एंव कठिनाइयों को मिटा नहीं सकते| ✍3. *असंभव* इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं| हम वो सब कर सकते है, जो हम सोच सकते है और हम वो सब सोच सकते है, जो आज तक हमने नहीं सोचा| ✍4. *हार ना मानना* बीच रास्ते से लौटने का कोई फायदा नहीं क्योंकि लौटने पर आपको उतनी ही दूरी तय करनी पड़ेगी जितनी दूरी तय करने पर आप लक्ष्य तक पहुँच सकते है| ✍5. *हार जीत* सफलता हमारा परिचय दुनिया को करवाती है और असफलता हमें दुनिया का परिचय करवाती है| ✍6. *आत्मविश्वास* अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है ✍7. *महानता* महानता कभी न गिरने में नहीं बल्कि हर बार गिरकर उठ जाने में है| ✍8. *गलतियां* अगर आप समय पर अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करते है तो आप एक और गलती कर बैठते है| आप अपनी गलतियों से तभी स

।मां के लिए।

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।मां के लिए। क्या क्या न कहॉ जमाने ने मां के लिए। मेने जब शब्दकोश मे देखा तो वहॉ कुछ भी न मिला मां के लिए।। मनोभॉव मे मेरे इतना कुछ था मां के लिए। कि मे जुबां से कुछ भी न कह सका मां के लिए।। जो थे सृष्टी के पालक वो  भगवान भी बालक हो गए मां के लिए। मेरी क्या औकात की में कुछ भी कर पाऊ मां के लिए।। कदमो मे उसके में सर भी रख दु तो भी कम होगा मां के लिए। अमानत ही है यह जीवन उसका, अगर में मीट भी जाऊँ  तो भी फक्र होगा मुझे मेरी मांं के लिए।। स्व रचना:- च़तरसिह गेहलोत Chtarsingg@gmail.com 9424540421