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ये है सपनो का सच

स्वप्न फल ज्योतिष - जानिए 251 सपनों के फल स्वप्न ज्योतिष के अनुसार नींद में दिखाई देने वाले हर सपने का एक ख़ास संकेत होता है, एक ख़ास फल होता है।  यहाँ हम आपको 251 सपनो के स्वपन ज्योतिष के अनुसार संभावित फल बता रहे है। सपने                                     फल 1- आंखों में काजल लगाना- शारीरिक कष्ट होना 2- स्वयं के कटे हाथ देखना- किसी निकट परिजन की मृत्यु 3- सूखा हुआ बगीचा देखना- कष्टों की प्राप्ति 4- मोटा बैल देखना- अनाज सस्ता होगा 5- पतला बैल देखना - अनाज महंगा होगा 6- भेडिय़ा देखना- दुश्मन से भय 7- राजनेता की मृत्यु देखना- देश में समस्या होना 8- पहाड़ हिलते हुए देखना- किसी बीमारी का प्रकोप होना 9- पूरी खाना- प्रसन्नता का समाचार मिलना 10- तांबा देखना- गुप्त रहस्य पता लगना 11- पलंग पर सोना- गौरव की प्राप्ति 12- थूक देखना- परेशानी में पडऩा 13- हरा-भरा जंगल देखना- प्रसन्नता मिलेगी 14- स्वयं को उड़ते हुए देखना- किसी मुसीबत से छुटकारा 15- छोटा जूता पहनना- किसी स्त्री से झगड़ा 16- स्त्री से मैथुन करना- धन की प्राप्ति 17- किसी से लड़ाई करना- प्रसन्नता प्राप्त होना 18- लड़ा

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@chatarsingg के ट्वीट देखें: https://twitter.com/chatarsingg/status/681492616664330240?s=09

जयश्रीराम

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जिसके दिल मे शिव है वही विष पिया करते है काल भी डरते हैं अंगार से जो श्रृंगार किया करते है #गर्व_से_कहो_हम_हिन्दू_है ।

सुप्रभात

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मन ही देवता मन ही ईश्वर मन के रूप हजार । मन उजीयारा जब जब फैले जग उजीयारा होय।

व्यंग्य ठिठुरता हुआ गणतंत्र

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💐एक उत्तम व्यंग्य💐 ठिठुरता हुआ गणतंत्र हरिशंकर परसाई 💐 चार बार मैं गणतंत्र-दिवस का जलसा दिल्ली में देख चुका हूँ। पाँचवीं बार देखने का साहस नहीं। आखिर यह क्या बात है कि हर बार जब मैं गणतंत्र-समारोह देखता, तब मौसम बड़ा क्रूर रहता। छब्बीस जनवरी के पहले ऊपर बर्फ पड़ जाती है। शीत-लहर आती है, बादल छा जाते हैं, बूँदाबाँदी होती है और सूर्य छिप जाता है। जैसे दिल्ली की अपनी कोई अर्थनीति नहीं है, वैसे ही अपना मौसम भी नहीं है। अर्थनीति जैसे डॉलर, पौंड, रुपया, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा-कोष या भारत सहायता क्लब से तय होती है, वैसे ही दिल्ली का मौसम कश्मीर, सिक्किम, राजस्थान आदि तय करते हैं। इतना बेवकूफ भी नहीं कि मान लूँ, जिस साल मैं समारोह देखता हूँ, उसी साल ऐसा मौसम रहता है। हर साल देखने वाले बताते हैं कि हर गणतंत्र-दिवस पर मौसम ऐसा ही धूपहीन ठिठुरनवाला होता है। आखिर बात क्या है? रहस्य क्या है? जब कांग्रेस टूटी नहीं थी, तब मैंने एक कांग्रेस मंत्री से पूछा था कि यह क्या बात है कि हर गणतंत्र-दिवस को सूर्य छिपा रहता है? सूर्य की किरणों के तले हम उत्सव क्यों नहीं मना सकते? उन्होंने कहा - जरा धीरज रखिए