।मां के लिए।

।मां के लिए।
क्या क्या न कहॉ जमाने ने मां के लिए।
मेने जब शब्दकोश मे देखा तो
वहॉ कुछ भी न मिला मां के लिए।।
मनोभॉव मे मेरे इतना कुछ था मां के लिए।
कि मे जुबां से कुछ भी न कह सका मां के लिए।।
जो थे सृष्टी के पालक वो  भगवान भी बालक हो गए मां के लिए।
मेरी क्या औकात की में कुछ भी कर पाऊ मां के लिए।।
कदमो मे उसके में सर भी रख दु तो भी कम होगा मां के लिए।
अमानत ही है यह जीवन उसका,
अगर में मीट भी जाऊँ  तो भी फक्र होगा मुझे मेरी मांं के लिए।।
स्व रचना:-
च़तरसिह गेहलोत
Chtarsingg@gmail.com
9424540421

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