मन के लड्डु

🐇कल्पना के लड्डू🐰

किसी गाँव में एक पंडित रहता था। उसने दान का आटा लेकर धीरे-धीरे एक बड़ा मटका भरकर अपने पास रख लिया। वह उस मटके की ओर हर सुबह उठकर सोचता और कहता, यदि कभी अकाल पड़ जाए तो इससे थोडा धन तो कमाया जा सकता है।
                                       इस आटे के पैसे से मैं दो बकरियां खरीदूंगा। जब बकरियों के बच्चे हो जायेंगे तो उन सबको बेचकर एक गाय खरीद लूंगा। गाय के बच्चे होने पर मैं उसे बेचकर भैंस खरीदूंगा।भैंसे बेचकर घोड़ी। फिर घोड़ियों के कई बच्चे हो जायेंगे। उन घोड़े-घोड़ियों को बेचकर मैं एक बड़ा सा मकान बनाऊंगा। तब मेरी शादी होगी। फिर मेरा एक बेटा होगा,जिसका नाम मैं सोमशर्मा रखूंगा।
                       वह लड़का शरारतें करेगा।किसी दिन वह घुटनों के बल चलता हुआ घोड़ों के पास से मेरे पास आएगा।मैं अपनी पत्नी से कहूंगा कि बालक को पकड़ो,यह घोड़ों के पास जा रहा है। लेकिन पत्नी बेचारी तो उस समय खाना बना रही होगी।इतने में वह बालक बिल्कुल घोड़ों के पास पहुंच जाएगा।ऐसे में मुझे ही अपनी चारपाई से उठकर भागना होगा। मैं अपने पुत्र को बचाने के लिए उसे जोर से टांग मारूंगा।
                                                       बस फिर क्या था,पंडित जी ने जोर से अपनी टांग उस मटके पर दे मारी। बस देखते -देखते मटका टूट गया और सारा आटा धरती पर बिखर गया, कल्पना का संसार हवा में उड़ गया।
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