नर्मदा....एक नदी नहीं सभ्यता बहती है...

नर्मदा....एक नदी नहीं सभ्यता बहती है...
नदी जो किसी भी क्षैत्र की जीवन रेखा होती है..एक नदी जो किसी क्षैत्र की उन्नति की प्रतीक होती है......एक नदी जो लोगों को जल के रूप में जीवन देती है...क्योंकि जल ही जीवन हैँ।  नदी के किनारे ही सभ्यताओं का जन्म ओर विकास हुआ है....फसलें इस जल से लहलहाती है.... जल जीवन और समृद्धि देने वाली इन नदियों को  भारत में  देवी कहा जाता है...इनकी पूजा की जाती है....हिमालय से निकलकर बंगाल की खाड़ी में समाने वाली गंगा में स्नान करने से पापों से मुक्ति मानी जाती है...ऐसा ही गोदावरी, माही, यमुना, के बारे में माना जाता है लेकिन आज मैं बात करने जा रहा हूँ  नर्मदा की....इस नदी का उद्गम स्थल मध्यप्रदेश के अमरकंटक के पास है। विध्यांचल की पहाडियों से बलखाते हुए ये पुरे मध्यप्रदेश को अपना पावन जल देती है....गुजरात में तो नर्मदा के सहारे ही विकास की नई इबारत लिखी जा सकी है । जहॉ भारत की अधिकतर नदियॉ पूर्व की ओर बहती है ..वहीं नर्मदा पश्चिम की ओर बहती है...इस नदी के किनारे अनेक जलप्रपात, तीर्थ, सुदंर स्थल बरबस ही किसी का भी मनमोह लेते है,....इसके किनारे बसे नगरों में अलग ही तरह का रंग होता है....नर्मदे हर के जयकारों से गुजँते इसके किनारे मन में उर्जा प्रदान करते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि गोदावरी में सात बार, गंगा में एक बार स्नान करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है लेकिन नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
नर्मदा नदी की उत्पत्ति के पीछे एक पौराणिक कथा है कि भगवान शिव ने कठोर तप किया, उनके पसीने से एक कन्या की उत्पत्ति हुई। इस कन्या जिसे नर्मदा के नाम से जग में जाना जाता है , ने शिव जी की 10000 साल तक तपस्या की, जिससे शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होने नर्मदा से वरदान मॉगने को कहा, नर्मदा जी ने कहा कि पिताजी में जल रूप में मानव जाति की सेवा करना चाहती हूँ, सारे तीर्थों का दर्शन लाभ मानव को केवल मेरे दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाए। मेरे जल से स्नान करने पर ब्रह्न हत्या का दोष भी समाप्त हो जाए... मैं सदानीरा रहूँ । मेरे जल का हर पाषाण शिव हो.... शिव जी नर्मदा जी के इस वरदान से प्रसन्न हुए उन्हें सारे वरदान दे दिए। इसलिए कहा जाता है कि नर्मदा हर कंकर शंकर है। पावन पूण्य , सलिला सदानीरा माँ रेवा की पूजा की जाती है...और भक्त माँ रेवा का आर्शिवाद लेने के लिए नर्मदा जी की परिक्रमा करते हैं।
नर्मदा परिक्रमा
नर्मदा विश्व की एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है....परिक्रमा मतलब नदी को बिना उलांघे पुरा फेरा लगाना.... 1312 कि.मी की इस यात्रा को विधिवत् पुरा करने में तीन वर्ष तीन महीने और तेरह दिन लगते है लेकिन कुछ लोग आजकल सड़क मार्ग से भी यात्रा 108 दिन में पुरी कर रहे है...नर्मदा परिक्रमा करते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि नर्मदा आपके दाहिने हाथ पर हो....नर्मदा परिक्रमा की शुरूआत ओंकारेश्वर जो कि मध्यप्रदेश में इंदौर के पास है वहॉ से या फिर नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से शुरू की जाती है । परिक्रमा को शुरू करने से पहले मुण्डन संस्कार करवाया जाता है...परिक्रमावासी ओकारेश्वर ज्योर्तिलिंग पर जल चढ़ाकर यात्रा की शुरूआत करते है,....कन्या भोजन भी करवाया जाता है। नर्मदा की परिक्रमा में सारी ससांरिक सुखों को त्याग कर ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। परिक्रमा मार्ग में अनेक तरह की मुश्किले आती है...लेकिन माँ नर्मदा को सच्चे मन से याद करने पर वे अवश्य मदद करने के आती है। ऐसे कई लोगों ने ऐसे यात्रा वृत्तांत सुनाए जिनमें माँ नर्मदा को स्वंय जरूरत पड़ने पर मदद करने का जिक्र मिलता है। बस आपका विश्वास आपकी आस्था सदा माँ में होने चाहिए ।
यात्रा के दौरान ऐसे कई रमणीय स्थल आते है जो आपका मन मोह लेते है...नर्मदा के किनारे बसे प्राचीन नगर इसकी ऐतिहासिक विरासत हैं।वैसे तो नर्मदा के किनारे की हर जगह का प्राकृतिक सोंदर्य देखते ही बनता है लेकिन मैं आपको  नमर्दा के किनारे बसे मुख्य नगर, तीर्थ. और प्राकृतिक स्थलो का की जानकारी देने जा रहा हूँ है
ऐतिहासिक दृष्टि से नर्मदा के तट बहुत ही प्रचीन माने जाते हैं। पुरातत्व विभाग मानता है कि नर्मदा के तट के कई इलाकों में प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष पाएँ गए है। ये सभ्यताएँ सिंधु घाटी की सभ्यता से मेल खाती है साथी ही इनकी प्राचीनता सिंधु सभ्यता से भी पुरानी मानी जाती है।
भारत की नदियों में नर्मदा का अपना महत्व है। न जाने कितनी भूमि को इसने हरा-भरा बनाया है। कितने ही तीर्थ आज भी प्राचीन इतिहास के गवाह है। नर्मदा के जल का राजा है मगरमच्छ जिसके बारे में कहा जाता है कि धरती पर उसका अस्तित्व25 करोड़ साल पुराना है। माँ नर्मदा मगरमच्छ पर सवार होकर ही यात्रा करती हैं, तो    आईये हम भी चलते हैं हम भी नर्मदा की यात्रा पर।
अमरकंटक :
सोहागपुर तहसील में विंध्य और सतपुड़ा पहाड़ों में अमरकंटक नाम का एक छोटा-सा गाँव है। उसी के पास से नर्मदा एक गोमुख से निकलती है। कहते हैं,किसी जमाने में यहाँ पर मेकल, व्यास, भृगु और कपिल आदि ऋषियों ने तप किया था। ध्यानियों के लिए अमरकंटक बहुत ही महत्व का स्थान है।
मंडला : 
नर्मदा का पहला पड़ाव मंडला है, जो अमरकंटक से लगभग 295 किमी की दूरी पर नर्मदा के उत्तरी तट पर बसा है। सुंदर घाटों और मंदिरों के कारण यहाँ पर स्थित सहस्रधारा का दृश्य बहुत सुन्दर है। कहते हैं कि राजा सहस्रबाहु ने यहीं अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा के प्रवाह को रोकने का प्रयत्न किया था इसीलिए असका नाम 'सहस्रधारा' है। 
भेड़ा घाट
जबलपुर से 13 किलोमीटर दूर भेड़ाघाट स्थित है। यह प्रकृति का एक शानदार अजूबा है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में भृगु मुनि ने इस स्थान पर लम्बे समय तक तपस्या की थी जिस कारण यह भृगु घाट कहलाने लगा। कुछ लोग भेड़ा घाट का अर्थ संगम से लगाते हैं। चूँकि यहाँ बावनी नदी नर्मदा से मिलती है इसलिए इसका नाम भेड़ाघाट पड़ा। यहाँ नर्मदा नदी दोनों तरफ संगमरमर कीचट्टानों के मध्य से गुजरती है। नर्मदा नदी के किनारे भेड़ाघाट से मिलने वाला संगमरमर पत्थर आर्कियन युग की चट्टानों से सम्बन्धितहैं।यह स्थान जबलपुर से 19 किमी पर स्‍थित है। किसी जमाने में भृगु ऋषि ने यहाँ पर तप किया था। उत्तर की ओर से वामन गंगा नाम की एक छोटी नदी नर्मदा मेंमिलती है। इस संगम अर्थात भेड़ा के कारण ही इस स्थान को 'भेड़ा-घाट'कहते हैं । यहाँ थोड़ी दूर पर नर्मदा का एक 'धुआँधार' प्रपात है। धुआँधार के बाद साढ़े तीन किमी तक नर्मदा का प्रवाह दोनों ओर सौ-सौ फुट से भी अधिक ऊँची संगमरमरीदीवारों के बीच से सिंहनाद करता हुआ गुजरता है।
होशंगाबाद :
भेड़ा-घाट के बाद दूसरे मनोरम तीर्थ हैं- ब्राह्मण घाट, रामघाट, सूर्यकुंड और होशंगाबाद। इसमें होशंगाबाद प्रसिद्ध है। यहाँ पहले जो गाँव था,उसका नाम 'नर्मदापुर' था। इस गाँव को होशंगशाह ने नए सिरे से बसाया था। यहाँ सुंदर और पक्के घाट है, लेकिन होशंगाबाद के पूर्व के घाटों का ही धार्मिक महत्व है।
नेमावर :
होशंगाबाद के बाद नेमावर में नार्मदा विश्राम करती है। नेमावर में सिद्धेश्वर महादेव का महाभारत कालीन प्राचीन मंदिर है। नेमावर नर्मदा की यात्रा का बीच का पड़ाव है, इसलिए इसे 'नाभि स्थान'भी कहते हैं। यहाँ से भडूच और अमरकंटक दोनों ही समान दूरी पर है। पुराणों में इस स्थान का'रेवाखंड' नाम से कई जगह महिमामंडन किया गया है।
जबलपुर
जबलपुर मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी है जो नर्मदा के किनारे स्थित है। इसका प्राचीन नाम ‘जावालि पट्टन’ था। यह 84 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित है।
धुआँधार जल प्रपात
नर्मदा नदी का यह जलप्रपात लगभग 95मीटर ऊँचाई से तीव्र वेग से गिरता है, जिसकी गर्जना दूर-दूर तक सुनी जा सकती है। इस आकर्षक जल प्रपात में जल की नन्हीं बूँदें बिखरकर धुँए का दृश्य बना देती हैं, इसलिए इसे धुँआधार के नाम से जाना जाता है।
गौरी शंकर एवं चौंसठ योगिनी
भेड़ाघाट के पास नर्मदा के किनारे ऊँची चोटी गौरी शंकर पर मंदिर स्थित है। जो गुलाबी रंग के पत्थरों से बना हुआ है। इसके द्वार पर एक प्राचीन शिलालेख लगा हुआ है। इस मंदिर का निर्माण संवत् 907 में चेदि राजा नरसिंह देव के कार्यकाले में उनकी माता अल्हण देवी ने बनाया था।
चौंसठ योगिनी मंदिर
दसवीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर में महाकाली चौंसठ योगिनी सहित विराजमान हैं। यहाँ 81 देवियों की सुन्दर मूर्तियाँ एक गोलाकार वृत्त में विराजमान हैं। यें भी गुलाबी पत्थरों से निर्मित हैं। यह मूर्तियाँ छोटे-छोटे मंदिरों में पायी गई हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ मेला लगता है। नर्मदा और बाणगंगा के संगम स्थल से ऊपर छोटी सी पहाड़ी पर एक गोलाकार चौंसठ योगिनी मंदिर है। यह कलचुरिकालिन मंदिर है। इसका निर्माणकलचुरी नरेश नरसिंह देव की माता अल्हण देवी ने करवाया था।
मण्डला दुर्ग
जबलपुर से 96 किलोमीटर महिष्मति नामक प्राचीन नगर है जिसे मण्डला कहते हैं। यहाँ बंजर नदी व नर्मदा के संगम पर एक दुर्ग विद्यमान है जिसे मण्डला का दुर्ग कहते हैं। नर्मदा नदी इस तीन ओर से घेरे हुए है तथा चौथी ओर गहरी खाई बनी हुई है। यह महल गौड़ राजाओं की राजधानी तथा शक्ति का प्रमुख केन्द्र रहा है। जिसका निर्माण प्रसिद्ध गौड़ राजा नरेन्द्र शाह ने अनेक वर्षों में कराया।
मोती महल
मण्डला से 16 किलोमीटर दूर रामनगर में सघन जंगल में 25 किलोमीटर ऊँचाई पर 65मीटर लम्बा तथा 61 मीटर चौड़ा आयताकार दुर्ग बना है जिसे मोती महल कहते हैं। यह महल गौड़ नरेश हृदयशाह ने बनवाया था। गोंड जनजाति मुख्यतया नर्मदा के दोनों ओर तथा विन्ध्य तथा सतपुड़ा के पहाड़ी क्षेत्र में पायी जाती है।
महेश्वर
महेश्वर को महिष्मति कहा जाता है। यह अहिल्याबाई होल्कर की राजधानी रहा है। यहाँ सहस्त्रधारा प्रपात दर्शनीय है। यह स्थान घाटों और मंदिरों के कस्बे के रूप में जाना जाता है। यह मोहन जोदड़ो से भी अधिक प्राचीन है। यह स्थान इन्दौर से 90 किलोमीटर दूर है। जो प्राचीन काल में हैहयवंशी नरेश कीर्तिवीर्य अर्जुन की राजधानी था। यहाँ के अन्य दर्शनीय स्थल-किला, कालेश्वर, राज-राजेश्वर,बिठ्ठलेश्वर, अहिलेश्वर, होल्कर परिवार का स्मारक, दशहरा तीर्थ मण्डप, सती बुर्ज आदि हैं।
ओंकारेश्वर
यह स्थान इन्दौर से 77 किलोमीटर दूर है। मान्धाता का शिव मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि राजा मान्धाता ने यहाँ स्थित शिवलिंग की पूजा की थी। ओंकारेश्वर का प्राचीन नाम मान्धाता है। यहाँके अन्य दर्शनीय स्थलों में सिद्धनाथ का मंदिर,चौबीस अवतार, आशादेवी मंदिर, पंचमुखी गणेश जी, विष्णु मंदिर प्रसिद्ध हैं।
बड़वानी कोटेश्वर- प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।
शुलपाण की झाड़ी
नर्मदा परिक्रमा में यही ऐसी जगह जहॉ आपका विश्वास डोल सकता है...यहॉ पर भील मामा के द्वारा लूट की जाती है . लेकिन यहॉ स्थित शुलपाणीश्वर महादेव के दर्शन का बड़ा ही महत्व है,यहॉ दर्शन के बिना यात्रा अधुरी मानी जाती है ..
यहाँ के बाद नर्मदा भड़ुच की ओर बहती है और खंभात की खाड़ी में अरब सागर में  मिल जाती है । समुद्र संगम को पार करने में 8-10 दिन का समय लगता है जो नाव से किया जाता है ।
नर्मदा घाटी
इस घाटी में समतल से हल्का ऊँचा-नीचा मैदान मिलता है जिसमें गहरी काली घाटीपायी जाती है। नर्मदा की उत्तरी सहायक नदियाँ बहुत छोटी हैं जो केवल विन्ध्य श्रेणी का जल लाती हैं। दक्षिणी सहायक नदियाँ जैसे- तवा और छोटी तवा, सतपुड़ा के अधिक वर्षा वाले क्षेत्र का जल नर्मदा में लाती हैं। सचकहा जाय तो नर्मदा की तुलना में सोन की घाटी कहीं ज्यादा सँकरी है। इस घाटी में मुख्यतः दक्कन ट्रेप नामक चट्टानें मिलती है। मध्यप्रदेश के जबलपुर, मंडला, होशंगाबाद,रायपुर, नरसिंहपुर, पूर्व निमाड़, बड़वानी, धार और देवास जिलों में नर्मदा की सँकरी एवं लम्बी घाटी स्थित है। नर्मदा घाटी में अवन्ति महाजनपद काफी समृद्ध शक्तिशाली था। इसकी दो राजधानियाँ उज्जैन और महिष्मति थीं। झाबुआ के बाद नर्मदा गुजरात में प्रवेश कर जाती है ।
पूनासा बॉध सरदार सरोवर बॉध आदि स्थल भी रमणीय है ।
 नर्मदा अपने जल के साथ तीन राज्यों का विकास, कई उत्सव, त्योहार, फसलें, परिवारों की खुशहाली भी लेकर बहती है, और यही कारण है कि जब भी कोई माँ रेवा को याद करता है तो मां अवश्य ही उसकी मदद करती है....इसी के साथ आपसे विदा लुगां...नर्मदे हर...

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