कृमि नाशक दिवस पर विशेष, "कृमि कारक कारण लक्षण उपचार"

राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस पर विशेष
"कृमि रोग  कारक लक्षण उपचार"
राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस 9 फरवरी को मनाया जाएगा। दिवस के दौरान प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र व शासकीय, अर्द्धशासकीय  व निजी विद्यालयों के 1 वर्ष से 19 वर्ष तक की बालक बालिकाओं को कृमिनाशक नाशक गोली एल्बेंडाजोल दी जाएगी।
क्या होते हैं परजीवी या कृमि
ये परजीवी कृमि भी कहलाते हैं।इनका संक्रमण हैलिमिंथियासिस जैसा संक्रमण होता है, जो नेमाटोड फायलम के जीवों द्वारा होता है। नीमाटोड परजीवी होते हैं। परजीवी (पैरासाइट्स) वह कीटाणु है जो व्यक्ति में प्रवेश करके बाहर या भीतर (ऊतकों या इंद्रियों से) जुड़ जाती है और सारे पोषक तत्व को चूस लेती है। कुछ परजीवी अर्थात कृमि अंततः कमजोर पड़कर व्यक्ति में बीमारी फैलाते हैं। कृमि (गोल कृमि) लंबे, आवरणहीन और बिना हड्डी वाले होते हैं। इनके बच्चे अंडे या कृमि कोष से डिंभक (लारवल) (सेता हुआ नया कृमि) के रूप में बढ़ते हुए त्वचा, मांसपेशियां, फेफड़ा या आंत (आंत या पाचन मार्ग) के उस ऊतक (टिशू) में कृमि के रूप बढ़ते जाते हैं जिसे वे संक्रमित करते हैं।
लक्षण
कृमि के लक्षण उसके रहने के स्थान पर निर्भर करते हैं।कोई लक्षण नहीं होता है या नगण्य होता है।लक्षण एकाएक दिखने लगते हैं या कभी-कभी लक्षण दिखाई देने में 20 वर्षों से ज्यादा का समय लग जाता है।एक बार में पूरी तरह निकल जाते हैं या मल में थोड़ा-थोड़ा करके निकलते हैं।पाचन मार्ग (पेट, आंत, जठर, वृहदांत्र और मलाशय) आंत की कृमियों से मिलकर पेट दर्द, कमजोरी, डायरिया, भूख न लगना, वजन कम होना, उल्टी, अरक्तता, कुपोषण जैसे विटामिन (बी 12), खनिज (लौह), वसा और प्रोटीन की कमी को जन्म देती है। मलद्वार और योनि के आसपास खुजली, नींद न आना, बिस्तर में पेशाब और पेट दर्द पिनकृमि के संक्रमण के लक्षण हैं।त्वचा-उभार, पीव लिए हुए फफोले, चेहरे पर बहुत ज्यादा सूजन, विशेषकर आंखों के आसपासएलर्जी संबंधी प्रतिक्रिया-त्वचा लाल हो जाना, त्वचा में खुजली और मलद्वार के चारों ओर खुजलीजठर फ्लूकः बढ़ी हुई नाजुक जठर, ज्वर, पेट दर्द, डायरिया, त्वचा पीला पड़नालसिका युक्त-सूजे हुए हाथी के पाव जैसे या अंडग्रंथि।
कारण
ऊतक नेमाटोड्स या गोल कृमिआंतीय कृमि: अस्करियासिस (गोल कृमि)- असकरियासिस कृमि के मल में इसके अंडे पाए जाते हैं जो प्रदूषित मृदा/सब्जियों के माध्यम से मनुष्य के भीतर अनजाने में ही चला जाता है। ये कृमि मनुष्य के अंतड़ियों में बढ़ते जाते हैं और रक्त के माध्यम से फेफड़ों आदि जैसे शरीर के अन्य भागों में चले जाते हैं। ये 40 से.मी. तक बढ़ सकते हैं।टेप कृमि: यह कृमि कई भागों में विभक्त होती है। ये पाचन मार्ग में पहुंचकर व्यक्ति के पोषक तत्व को चूसती हैफिलारियासिस: विभिन्न समूहों की कृमि जो त्वचा और लसिका ऊतकों में पहुंच जाती है।
कारक
मलीय संदूषित जलअस्वास्थ्यकर स्थितियांमांस या मछली को कच्चा या बिना पकाये खानापशुओं को अस्वास्थ्यकर वातावरण में पालनाकीड़ों व चूहों से संदूषणरोगी और कमजोर व्यक्तिअधिक मच्छरों व मक्खियों का होनाखेल के मैदान जहां बच्चे मिट्टी के संपर्क में आते हों और वहां कुछ खाते हों।
उपचार
इस रोग में रोगी को काने हेतु तरल पदार्थ ही दें। इसके अलावा पूरा आराम मिले। परिवार के सभी सदस्यों का परीक्षण और उपचार कराना श्रेष्ठ होगा। उपचार पूरा होने तक अंतःवस्त्र, कपड़े, चादर आदि को गर्म पानी से धोना चाहिये। हाथ धोते रहना, बिना पकाया व कच्चा आहार न लेना, फल व सब्जियों को अच्छी तरह धोना और पानी को उबाल कर पीना चाहिये।

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